प्रस्तुत लेख में लेखक ने महात्मा गांधी की सतत प्रासंगिकता का विवेचन एवं विश्लेषण किया है द्य दुनियाभर के तमाम लोग गांधी रजी को एवं उनके विचारों को एक ऐतिहासिक कालखंड में सीमित करते हैं द्य यहाँ पर लेखक ने यह दर्शाया है कि वैसे तो आत्मनिर्भर गाँव,औद्योगीकरण और आधुनिकता के विरोध तथा कामुकता और लैंगिकता सम्बन्धी गांधीवादी विचार वर्तमान परिदृश्य में कुछ ख़ास महत्व के नहीं हैं और लगभग अप्रासंगिक हो चुके है परंतु अहिंसा, अस्मिता, बहुसंस्कृतिवाद, राष्ट्रवाद विषयक गंधी जी के विचर आज भी अत्यधिक समीचीन एवं प्रासंगिक हैं और आगे भी समीचीन और प्रासंगिक रहेंगे। इसके अतिरिक्त, सत्य और अहिंसा पर आधारित गंधी जी की जीवनशैली, उनकी नैतिक-पारदर्शिता तथा निर्भीकता और प्रायोगिक -जीवन्त्तता मानवता को चिरकाल तक प्रेरित करती रहेगी।