वस्तुतः महात्मा गांधी एवं डा. लोहिया एक ही कार्यरत जीवन की दो अभिव्यक्तियां हैं। भारतीय जीवन मूल्यों के प्रति डा. लोहिया की अनन्य आस्था थी। गांधी तो कर्म में इतने डूबे हुए व्यक्ति थे कि उन्हें केवल अगला कदम ही दिखता था। और वह अगला कदम इतना दृढ़ और युगान्तकारी था इसके लिए प्रमाण ढूढ़ने की जरूरत नहीं है। वह स्वयम् मील के पत्थर की तरह स्पष्ट है। डा. राम मनोहर लोहिया एवं महात्मा गांधी में कई बिन्दुओं पर मतभेद भी था यथा गांधी के ट्रस्टीशिप की अवधारणा, परन्तु समाजवादी दल के नेताओं में नरेन्द्र देव तथा जयप्रकाश नारायण पर माक्र्सवाद का सबसे अधिक प्रभाव था।उन्होंने पत्थरों की भाषा को पढ़ने की कोशिश की है। यातना शिविर में अपनी असीम सहन शक्ति को योगाभ्यास का एक अंग माना है। मूर्तियांें के माध्यम से मनुष्य की जातीय स्मृति और पहचान को व्याख्यायित करने की कोशिश की है। साहित्य, रस, आनन्द, काव्य भाषा, भूषा, भवन इन सबका एक विचित्रा निरूपण और व्याख्या हमें उनके आलेखों में मिलती है।