9/11 की आतंकवादी घटना के बाद विश्व की महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका (यू एस ए) के नेतृत्व में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की सेना ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर हवाई हमले तथा सैनिक कार्रवाई करके आतंकवादी संगठन ‘तालिबान‘ को 2001 के अक्तूबर में सत्ता छोडकर भागने को मजबूर कर दिया था I तब अंतराष्ट्रीय राजनीति के अध्येताओं ने कल्पना भी नहीं की थी कि दो दशक बाद वही तालिबान अमेरिकी सेना की काबुल के हामिद करज़ई एयरपोर्ट पर उपस्थिति के बावजूद यू एस समर्थित राष्ट्रपति अशरफ गनी सरकार की तीन लाख से अधिक संख्या वाली सुरक्षा सेना के बिना प्रतिरोध के काबुल की सत्ता पर दुबारा नियंत्रण कर लेगा I यदपि विश्व को चौकाने वाली यह राजनीतिक घटना तालिबान की नाटकीय सैन्य सफलता के रूप में देखा जा रहा है किन्तु इसके पीछे अमेरिका और तालिबान के बीच 29 फरवरी, 2020 को कतर की राजधानी दोहा में सम्पन्न शांति समझौता का बहुत कूटनीतिक महत्व है I अफगानिस्तान में महाशक्तियों के बीच जारी विश्व में बर्चस्व की लड़ाई में सोवियत संघ के सैनिक हस्तक्षेप और अन्तत: खाली हाथ वापसी तथा, अब 2021 में 20 वर्षों बाद यू एस के द्वारा अफगानिस्तान को उसी तालिबान को सौंपकर वापसी दो महाशक्तियों की अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप की विफलता ही दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है I क्या तालिबान इस बार अफगानिस्तान में राजनीतिक स्थिरता स्थापित कर वहाँ के आम जनता, और खासकर लड़कियों, औरतों को सुरक्षा, सम्मान और विकसित होने का अवसर दे पाएगा और दक्षिण एशिया में आतंकवाद को बढ़ावा न देकर भारत और पाकिस्तान के बीच स्थित तनाव को और नहीं बढ़ाएगा? ऐसे कई सवालों के संभावित उत्तर को जानने और समझने की कोशिश यह शोध पत्र करता है I
डॉ अश्वनी शर्मा, शशि शेखर प्रसाद सिंह. अफगानिस्तान में तालिबान: समस्या या समाधान. International Journal of Sociology and Political Science, Volume 3, Issue 2, 2021, Pages 17-26